शादी विवाह,पार्टी, जन्मदिन समारोह व किसी भी प्रकार के प्रोग्राम के लिए चौधरी फॉर्म हाउस आपका स्वागत करता है

अमर रेस्टोरेंट की ओर सभी क्षेत्रवासियों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

न्यू Era एकेडमी में एडमिशन हेतु जल्दी संपर्क करें

मोहित अग्रवाल की ओर से सभी प्रदेशवासियों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं

आशा नौटियाल की ओर सभी प्रदेशवासियों को होली एवं नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं

यमुना एसोसिएट की ओर से सभी को होली व ईद की हार्दिक शुभकामनाएं

संजय कुमार, पूर्व जिला पंचायत सदस्य की ओर से सभी देश व प्रदेशवासियों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं

पार्षद अभिषेक पंत की ओर से सभी प्रदेशवासियों को होली व नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं

जिला अध्यक्ष मीता सिंह की ओर से सभी प्रदेशवासियों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं

सुमित चौधरी नगर पंचायत अध्यक्ष सेलाकुई की और से सभी नगर एवं प्रदेशवासियों को होली नवरात्रि व बैसाखी की हार्दिक शुभकामनाएं

सामाजिक कार्यकर्ता, सतपाल सिंह बुटोला की ओर के सभी क्षेतवासियों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं

पार्षद, संजय सिंघल की ओर से सभी प्रदेशवासियों को होली एवं बैसाखी की हार्दिक शुभकामनाएं

पार्षद, जाहिद अंसारी की ओर से सभी क्षेत्र वासियों को ईद_उल_ फितर बहुत-बहुत मुबारक

टिहरी: पहले गांव का जीवन भी अजीब सा होता था जहां संसाधन न होने पर भी लोग सकून से रहते थे आपसी मेल मिलाप से जीते थे। उन्हें किसी भी बात की फिक्र नही होती थी कोई जरूरत पड़े तो वैकल्पिक वस्तु को खोज लेते थे बात हो रही हैं मेहंदी के पौधे की।
पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं हमारे पूर्वज भी बहुत शौकिया मिजाज के होते थे और शादी, कौथिक या पारिवारिक कार्यो पर महिलाएं सवरती थी तथा अपने हाथों में मेहंदी लगाते थे उस समय बाजार में मेहंदी आती नही होगी। उन्होंने इसके एवज में मेंहदी का पौधा ढूढ़ निकाला। डॉ सोनी कहते हैं खुद मैंने यह मेहंदी लगाई हैं।
इस पौधें के पत्तियां निकालते थे और शीलपट्टे में बारीक पीसते थे । उसे गाडा रंग के लिए चाय पत्ती या दाड़िम (अनार) के छिलके पीसकर मिला देते थे। रात को अपने हाथों में लगा लेते थे।सुबह हाथों में मेहंदी का रंग देता था। उस समय युवक युवतियां, महिलाएं और दूल्हा दुल्हन अपने हाथों में इसी पौधे के पत्तो की मेहंदी लगाया करते थे। इसके लिए इनके पत्तियों को सुखाकर पॉवडर बनाकर रखते थे। उस समय भी मेहंदी की रस्म निभाई जाती होगी। इसीलिए तो इस पौधे की खोज हुई। कैसा होगा वह जमाना जहां उन्होंने अपना जीवन निभाया।
इस पौधे को अलग अलग नामो से जाना जाता हैं कहीं इसे मंजीरा के नाम से जाना जाता हैं। संगीता कठैत कहती हैं इस मेहंदी के पौधे से हमारी बचपन की यादें जुड़ी हैं छोटे में हमने इसको खूब हाथों में लगाया हैं। वहीं यशुबाला उनियाल ने बिलुप्त होते पौधे की संरक्षण की बात कही। मेहंदी पौधों के साथ दीपिली ठाकुर, नीलम, सीमा असवाल, अनिता उनियाल, शोभा नेगी, रीना बर्तवाल, वीरसिंह राणा, गजेंद्र बेंजुला, दिनेश हटवाल आदि उपस्थित थे।