विभिन्न जन संगठनों और विपक्षी दलों ने यूसीसी बिल को बताया असंवैधानिक और पितृसत्ता को बढ़ावा देने वाला

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देहरादून: विभिन्न जन संगठनों और विपक्षी दलों ने उत्तराखंड विधानसभा में पारित समान नागरिक संहिता बिल को असंवैधानिक, महिला, अल्पसंख्यक विरोधी और पितृसत्ता को बढ़ावा देने वाला करार दिया है। सिविल सोसायटी और विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस ने विधेयक को खारिज करने की बात कही गई।

सिविल सोसायटी की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा कि यह कानून महिलाओं पर पितृसत्तात्मक रूढ़ियों को थोपने का प्रयास है। महिलाओं ने लंबे संघर्ष के बाद पितृसत्ता से मुक्ति का रास्ता बनाया है, लेकिन सरकार फिर से महिलाओं पर वही नियम थोपने जा रही है। लिव इन रिलेशन संबंधी प्रावधानों को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने को मान्यता दी है और यहां तक कहा है कि जरूरत पड़ने पर ऐसे जोड़ों को सुरक्षा दी जाएगी। यूसीसी बिल में लिव इन रिलेशन के रजिस्ट्रेशन को उन्होंने लोगों की गोपनीयता भंग करना बताया।

उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत ने इस बिल को हिन्दू नजरिये से बनाया गया बिल बताया। कहा कि इसमें सभी धर्मों का सम्मान और जीवन मूल्यों की सुरक्षा का कोई ध्यान नहीं रखा गया है। उन्होंने कहा कि यह महिला स्वतंत्रता विरोधी विधेयक है। महिलाओं के लिए प्रावधान करने से पहले किसी भी महिला संगठन की राय नहीं ली गई। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि कांग्रेस को इस बिल के कई प्रावधानों पर असहमति है। पार्टी के विधायक जितना समय मिला, अपनी आपत्ति विधानसभा में दर्ज कर चुके हैं। बीजेपी ने जो दावे किये हैं, उसी से पता चलता है कि विधेयक के नाम पर सिर्फ लीता-पोती कर रहे हैं। बीजेपी ने 2 लाख लोगों के सुझाव आने की बात कही है और यह भी कहा है कि प्रदेश की 10 प्रतिशत जनता ने अपने सुझाव दिये हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या राज्य के 2 लाख की आबादी 10 प्रतिशत है।

सीपीआई (एमएल) के प्रदेश महासचिव इंद्रेश मैखुरी ने उन्होंने कहा कि संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में यूसीसी का जिक्र है, लेकिन यह भी प्रावधान है कि इस तरह का कोड राष्ट्र राज्य बनाएगा, न कि कोई प्रदेश। उन्होंने इसे सिविल कोड के बजाय क्रिमिनल कोड करार दिया और कहा कि कई जगह सजाओं का जिक्र है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ंलिव इन रिलेशन भारतीय संस्कृति है या नहीं, यह सवाल सरकार से पूछा जाना चाहिए, जोे इस तरह के रिलेशन का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने जा रही है। उन्होंने इसे हास्यास्पद बताया। सीपीएम के नेता सुरेन्द्र सजवाण ने कहा कि यह बिल भाई-बहनों के बीच दरार पैदा करने वाला और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाला है। बिल वेलेंटाइन डे पर पार्कों में लोगों को परेशान करने वाले गिरोह को पूरे साल इस तरह के हुड़दंग करने की इजाजत देने वाला है।

सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट रजिया बेग ने यूसीसी बिल को एक बेहूदा बिल बताया। उन्होंने कहा कि संविधान में पहले से विभिन्न समुदायों के लिए शादी के कानून हैं। इन कानूनों को खत्म किये बिना और एक और कानून कैसे बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह बिल पूरी तरह से अल्पसंख्यक समुदाय को निशाने पर लाने के लिए बनाया गया है। राज्य सरकार को इस तरह का कानून बनाने का कोई अधिकार ही नहीं है। समाजवादी पार्टी के डॉ. एसएन सचान ने कहा कि इस कानून को लागू करने से पहले पर्सनल लॉ को बदलना होगा। विधेयक ड्राफ्ट करने से पहले किसी भी ऐसे समुदाय की सलाह नहीं ली गई, जो इस तरह के कानून से प्रभावित होगा। ऐसे में यह विधेयक पूरी तरह निरर्थक है और साफ है कि राजनीतिक लाभ के लिए लाया गया है।

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