खतौनी में विरासत चढ़ाने के आवेदन की प्राप्ति रसीद ना दिए जाने पर शासन सख्त

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सुमित चौधरी की ओर से समस्त क्षेत्रवासियों को दीपावली, धनतेरस, गोवर्धन पूजा और भाईदूज की हार्दिक शुभकामनाएं

प्रधान कोमल देवी की ओर से सभी प्रदेशवासियों को दीपावली, धनतेरस, गोवर्धन पूजा और भैयादूज की हार्दिक शुभकामनाएं

प्रधान माला गुरुंग की ओर से सभी प्रदेशवासियों को दीपावली, धनतेरस, गोवर्धन पूजा और भैयादूज की हार्दिक शुभकामनाएं

K.J ज्वैलर्स की ओर से सभी क्षेत्रवासियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

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श्री बालाजी पेट्रोल पंप की ओर से सभी क्षेत्रवासियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

अग्रवाल प्रॉपर्टीज की ओर से सभी देशवासियों व क्षेत्रवासियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

देहरादूनः प्रदेश में लेखपालों द्वारा जनता (आवेदकों) को खतौनी में विरासत चढ़ने के आवेदन की प्राप्ति रसीद ना दिए जाने पर शासन ने सख्त रुख अपनाया ।  शासन ने  शिकायत का संज्ञान लिया है।  मामले में उत्तराखंड राजस्व परिषद के आयुक्त एवं सचिव को शासन द्वारा कार्यवाही का नोटिस जारी किया गया।

प्रदेश में लेखपालों द्वारा जनता (आवेदकों) को खतौनी में विरासत चढ़ने के आवेदन की कोई भी प्राप्ति रसीद नही दिए जाने को लेकर राजस्व विभाग के विरुद्ध शासन में शिकायत की गई थी। बता दें कि प्रदेश में लेखपालों द्वारा जनता (आवेदकों) को  खतौनी में विरासत चढ़ने के आवेदन की कोई भी प्राप्ति रसीद नहीं दी जाती है। जिस कारण प्रदेश के हजारों आवेदको को परेशान होना पड़ता है, साथ ही तहसीलों के चक्कर काटने पड़ते हैं । और 7 दिन के बजाय विरासत चढ़ने में दो से तीन महीने लग जाते हैं।

मामला इस प्रकार है कि जब खतौनी (जमीन की फर्द) के किसी खातेदार की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी मृत्यु के पश्चात उसके विधिक वारिसो द्वारा खतौनी में अपना नाम अर्थात विरासत दर्ज करवाने हेतु अपने क्षेत्र के लेखपाल के समक्ष आवेदन किया जाता है। परंतु लेखपाल द्वारा आवेदकों को खतौनी में विरासत चढ़ने के आवेदन की कोई भी प्राप्ति रसीद आदि नहीं दी जाती है। जोकि बिल्कुल भी न्याय संगत वी तर्कसंगत नहीं है।

खतौनी में विरासत चढ़ाया जाना उत्तराखंड सेवा का अधिकार अधिनियम 2011 के तहत अधिसूचित की गई महत्वपूर्ण सरकारी सेवाओं में से एक है। तथा उत्तराखंड सेवा का अधिकार आयोग द्वारा भी खतौनी में विरासत चढ़ने की अवधि अर्थात समय सीमा मात्र 7 दिन निर्धारित की गई है। इसलिए लेखपालों द्वारा जनता (आवेदकों) को खतौनी में विरासत चढ़ने के आवेदन की कोई भी प्राप्ति रसीद ना दिया जाना नियम विरुद्ध है।

बता दें कि विभिन्न प्रमाण पत्रों जैसे आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, स्थाई निवास प्रमाण पत्र, मूल निवास प्रमाण पत्र, चरित्र प्रमाण पत्र, हैसियत प्रमाण पत्र, उत्तरजीवी प्रमाण पत्रों आदि की रसीद आवेदकों को अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराई जाती है।
परंतु ठीक इसी के विपरीत लेखपालों द्वारा आवेदको को को खतौनी में विरासत चढ़ने के आवेदन की कोई भी प्राप्ति रसीद आदि नहीं दी जाती है।

जिस कारण भविष्य में पत्राचार व साक्ष्य की दृष्टि से देखा जाए तो आवेदकों के पास कोई भी ऐसा साक्ष्य (प्रूफ) नहीं रहता है, जिससे कि वे यह सिद्ध कर पाए कि उनके द्वारा खतौनी में विरासत चढ़ाने हेतु लेखपाल के समक्ष आवेदन किया गया है। और सबसे बड़ी बात ये है कि बिना किसी प्राप्ति रसीद के आवेदक सेवा का अधिकार आयोग में भी अपील नहीं कर सकते हैं। क्योंकि आयोग में अपील करने के लिए संबंधित सेवा अथवा कार्य की प्राप्ति रसीद होना अनिवार्य है। जिससे ये दर्शाया जा सके कि आवेदक द्वारा किस दिनांक को आवेदन किया गया है। इसी आधार पर आयोग कार्यवाही करता है।

इसीलिए लेखपालों द्वारा आवेदकों को खतौनी में विरासत चढ़ने के आवेदन की प्राप्ति रसीद ना दिया जाना नियम विरुद्ध है। जो कि प्रदेश की जनता के साथ एक तरह का खिलवाड़ है। इसी को लेकर समाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद आशिक द्वारा दिनांक 08 जुलाई 2024 को राजस्व सचिव, उत्तराखंड शासन के समक्ष शिकायत दर्ज कराई गई थी।  उनकी इस शिकायत का संज्ञान लेते हुए मामले में उत्तराखंड शासन में राजस्व विभाग के संयुक्त सचिव भूपेंद्र सिंह बोरा द्वारा उत्तराखंड राजस्व परिषद के आयुक्त तथा सचिव को उपरोक्त मामले में कार्यवाही करने के लिए नोटिस जारी किया गया है।

अब उत्तराखंड राजस्व परिषद के आयुक्त तथा सचिव को इस मामले में कार्यवाही करनी है और की गई कार्यवाही से शासन व मुझे (शिकायतकर्ता) को भी अनिवार्य रूप से अवगत कराना होगा। अब चूंकि मामला शासन के संज्ञान में है और मामले में शासन द्वारा कार्यवाही भी शुरु कर दी गई है। जिससे अब आवेदकों को खतौनी में विरासत चढ़ने के आवेदन की प्राप्ति रसीद मिल सकेंगी। जिससे प्रदेश की हजारों जनता को राहत मिलेगी। और रसीद मिलने से राजस्व विभाग के लेखपाल/अधिकारी भी गंभीर होकर बिना किसी लापरवाही के तय समय के अनुसार काम करने के लिए बाध्य होंगे।

क्या होता है खतौनी में विरासत चढ़ना

दरअसल, खतौनी में विरासत चढ़ना एक कानूनी प्रक्रिया है।
जो राज्स्व संहिता की धारा 31(1) के तहत होती है।
इसके अंतर्गत जब खतौनी (जमीन की फर्द) के किसी खातेदार की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी मृत्यु के पश्चात उसके विधिक वारिसो (पुत्र/ पुत्रियों) द्वारा खतौनी में अपना नाम अर्थात विरासत दर्ज करवाने हेतु अपने क्षेत्र के लेखपाल के समक्ष आवेदन करना होता है।
जिसके बाद लेखपाल द्वारा फॉर्म प. क. 11ख (निर्धारित प्रारूप) भरकर उसपर मृतक के वारिसो के हस्ताक्षर करवाए जाते हैं।
इसके पश्चात लेखपाल इस पर अपनी रिपोर्ट लगाकर तथा सत्यापित करके इसे कानूनगो के पास भेज देता है।
जिसके बाद इस पर कानूनगो को अपनी रिपोर्ट लगता है तथा इसे सत्यापित करता है।
तथा इसके बाद इसे रजिस्टर कानूनगो के पास भेज दिया जाता है।
इसके बाद रजिस्ट्रार कानूनगो द्वारा इसे सत्यापित किया जाता है।
और फिर इसके पश्चात कंप्यूटर से खतौनी में विरासत दर्ज होने के आदेश चढ़ाए जाते हैं।
अर्थात मृतक के वारिसो का नाम खतौनी में चढ़ जाता है। इसे ही खतौनी में विरासत चढ़ना कहा जाता है।
उत्तराखंड सेवा का अधिकार अधिनियम 2011 के तहत खतौनी में विरासत चढ़ने की समय सीमा मात्र 7 दिन निर्धारित की गई है।
परंतु लोगों को इसकी जानकारी नहीं है जिस कारण जानकारी के अभाव में तथा बिना किसी रसीद के ना तो लोग शिकायत करते हैं और ना ही आयोग में अपील कर सकते हैं।
इसीलिए लेखपालों द्वारा जनता की इस मजबूरी का बखूबी फायदा उठाया जाता है।
और 7 दिन के बजाय इस काम में दो-दो, तीन-तीन महीने तक लग जाते हैं।
जिससे जनता को काफी परेशानी होती है और तहसीलों वह लेखपालों के चक्कर काटने पड़ते हैं।

खतौनी में विरासत दर्ज करवाने के लिए चाहिए होते हैं ये निम्नलिखित दस्तावेज:-

1. जमीन की खतौनी (फर्द)
2. मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्र
3. ग्राम प्रधान या पार्षद द्वारा लिखा गया वारिसान प्रमाण पत्र
4. उत्तरजीवी प्रमाण पत्र
5. शपथ पत्र
6. मृतक के सभी वारीसो के आधार कार्ड

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